क्या मंदिर, क्या मस्जिद बनायेंगे, अगर बन सका तो सियासी मौकापरस्तो को इंसान बनाएँगे.
बहा चुके है हम, अब तक लहू ही अपना , अब तो वतन की तरक्की मे ही , अपना पसीना ही बहेयेंगे.
आज वो बन बैठा है शैतान का कासिद, और हम से हमारे मज़हब का पता पूछता है,
कल जो बैठा था मयखाने मे ए मेरे साकी और दीवानी हसिनाओ का पता पूछता था
उसकी नादानी को तू बख्श ए खुदा, वो मज़हब को मेरी इंसानियत से फर्क करता है और इसलिए ही वो खुद मे मे बसे राम को खुद के रहीम से अलग करता है
क्या मंदिर, क्या मस्जिद बनायेंगे, अगर बन सका तो सियासी मौकापरस्तो को इंसान बनाएँगे.
बहा चुके है हम, अब तक लहू ही अपना , अब तो वतन की तरक्की मे ही , अपना पसीना ही बहेयेंगे.
आज वो बन बैठा है शैतान का कासिद, और हम से हमारे मज़हब का पता पूछता है,
कल जो बैठा था मयखाने मे ए मेरे साकी और दीवानी हसिनाओ का पता पूछता था
उसकी नादानी को तू बख्श ए खुदा, वो मज़हब को मेरी इंसानियत से फर्क करता है
और इसलिए ही वो खुद मे मे बसे राम को खुद के रहीम से अलग करता है
good one
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