Sunday, October 3, 2010

मुकाम

वो मौत से डरा रहे है ऐ सागर-ए-जहाँ हमे, जो खुद उधार की जिंदगी जीते है
हमारी तो फितरत कुछ लहरों सी होती है, जहाँ ज़िन्दगी इक लम्बा इंतजार,
और साहिल के आगोश मे आखिरी साँस ही, मुकाम-ए- जिन्दंगी मुकरर होती है.

No comments:

Post a Comment