Saturday, April 24, 2010

इक ज़मीं का इक आसमान

हर एक ज़मीन का अपना आसमा नहीं होता ,
जो बनाते है मज़हबी सरहदें उनका खुद निशान नहीं होता ,

वो वक़्त दूर नहीं जब हर एक ज़मी का एक ही आसमा होगा ,
जब बचे हर इन्सान का एक ही मज़हब और इंसानियत , इमान होगा .

2 comments:

  1. This day would come just after The Qyamat..As usually great fear gives you cause to unite.

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