Tuesday, April 27, 2010

जग मरूभूमि

चल रहा हु जग मरू -भूमि मे , पद चिन्ह मिटाते जा रहा हु ,

बहा चूका हु जिस जल-जीवन को , उसे तलाशते मरीचिका मे फसते जा रहा हु ,

आज के महत्व को गौण कर , मै भविष्य निधि उपार्जित किया जा रहा हु,

वास्तव मे, पाया ही क्या आज तक मैंने यहाँ ,जिसे खोते जा रहा हु ,

संसारिक आडम्बरो का बोझ तले मै आज खुद एक विषय वस्तु बनता जा रहा हु,

मै जन्मा जिस शुन्य से था, आज मै फिर वही शुन्य मे विलीन होता जा रहा हु.....
...........फिर एक नयी शुरुआत के लिए !

Gist of above lines:-
It is about how we are living now..race and race and more race.. We tend to forgot as a human being that "from where it starts and where it will end"...Very philosophical stuff but in very simple term "we should live what we want to but not what others want to...

Saturday, April 24, 2010

Attack on Heart of Mumbai

नसों से टपकी , लहू की हर एक बूंद हिसाब मांगती है ,
हलक से निकली , हर एक चीख जवाब मांगती है ,
वो समझते है हुकूमते -ऐ-सब्र को लाचारी का सबब ,
जो झूठ होकर भी हमे सुच का शुबा देती है

इक ज़मीं का इक आसमान

हर एक ज़मीन का अपना आसमा नहीं होता ,
जो बनाते है मज़हबी सरहदें उनका खुद निशान नहीं होता ,

वो वक़्त दूर नहीं जब हर एक ज़मी का एक ही आसमा होगा ,
जब बचे हर इन्सान का एक ही मज़हब और इंसानियत , इमान होगा .

अगर ज़िन्दगी ..

गर ज़िन्दगी है तो मौत से बत्तर क्यों है ,
गर मंजिले है तो राह समंदर क्यों है ,
गर तन्हाई ही मुक्कदर है तो फिर ये इंतज़ार क्यों है ,
गर हमसफ़र है तो ज़िन्दगी की राहो मे हम अकेले क्यों है ....