चल रहा हु जग मरू -भूमि मे , पद चिन्ह मिटाते जा रहा हु ,
बहा चूका हु जिस जल-जीवन को , उसे तलाशते मरीचिका मे फसते जा रहा हु ,
आज के महत्व को गौण कर , मै भविष्य निधि उपार्जित किया जा रहा हु,
वास्तव मे, पाया ही क्या आज तक मैंने यहाँ ,जिसे खोते जा रहा हु ,
संसारिक आडम्बरो का बोझ तले मै आज खुद एक विषय वस्तु बनता जा रहा हु,
मै जन्मा जिस शुन्य से था, आज मै फिर वही शुन्य मे विलीन होता जा रहा हु.....
...........फिर एक नयी शुरुआत के लिए !
Gist of above lines:-
It is about how we are living now..race and race and more race.. We tend to forgot as a human being that "from where it starts and where it will end"...Very philosophical stuff but in very simple term "we should live what we want to but not what others want to...
बहा चूका हु जिस जल-जीवन को , उसे तलाशते मरीचिका मे फसते जा रहा हु ,
आज के महत्व को गौण कर , मै भविष्य निधि उपार्जित किया जा रहा हु,
वास्तव मे, पाया ही क्या आज तक मैंने यहाँ ,जिसे खोते जा रहा हु ,
संसारिक आडम्बरो का बोझ तले मै आज खुद एक विषय वस्तु बनता जा रहा हु,
मै जन्मा जिस शुन्य से था, आज मै फिर वही शुन्य मे विलीन होता जा रहा हु.....
...........फिर एक नयी शुरुआत के लिए !
Gist of above lines:-
It is about how we are living now..race and race and more race.. We tend to forgot as a human being that "from where it starts and where it will end"...Very philosophical stuff but in very simple term "we should live what we want to but not what others want to...