Sunday, December 4, 2011

यादें


वक़्त तो गुज़र गया, पर कुछ अंजाम अभी बाकी है,
जिंदगी गुज़र गयी, पर कुछ मुकाम अब भी बाकी है,
जिस्म तो अब खाक हो चुका, पर  हम सब के दिलो मे अभी वो नाम बाकी है.... 

Saturday, January 15, 2011

Muflis

तेरी मुफलिसी को हम दूर कर देंगे,तेरी दिल कि तनहाइयो को मजबूर देंगे
तू रश्क़ न कर ए दोस्त मेरे,हम तेरे जनाजे को भी, उनकी बारात से महशूर कर देंगे

Teri Muflisi ko hum dur kar denge, teri dil ki tanhaeyo ko mazbur kar denge,
Tu rashk na kar e dost mere, hum tere janaze ko bhi, unki barat se mahshur kar denge.

Tuesday, October 26, 2010

खलिश

तन्हा ये जिस्म नहीं, ये रूह भी है,खलिश मेरे सीने मे ही नहीं, मेरी आरजू मे भी है
मदनो से मिलना तो तक़दीर थी मेरी , पर दर्द ए इश्क की ये जुस्तजू,अब मेरी ही है
गर जन्नत है इस जहाँ मे ए मेरे खुदा, तो अब तो हमें उसकी हसरत, भी अधूरी सी है,
ऐ जिंदगी अब तू गैर ही सही, पर तुझे ज़ीने की ज़रूरत, न जाने आज भी ज़रूरी सी है,

अब हम गैरों से क्या गिला करे, हम तो अपनो के खातिर , अपने हाथो ही मजबूर हो गए,
निभाई तो कई वफाए इस दिल ने, फिर भी महफिले- ऐ- आशिकी मे हम "बेवफा" महशूर हो गए,
यो तो वक़्त, ज़ख़्मी दिलो पर मरहम लगा जाता है, पुरानी यादो मे आज के पैबंद बना जाता है,
पर जब ये जिस्म खाक हो जायेगा, तब ही इस दिल के हर ज़र्रे से मदनो फ़ना हो पायेगा




Sunday, October 3, 2010

मुकाम

वो मौत से डरा रहे है ऐ सागर-ए-जहाँ हमे, जो खुद उधार की जिंदगी जीते है
हमारी तो फितरत कुछ लहरों सी होती है, जहाँ ज़िन्दगी इक लम्बा इंतजार,
और साहिल के आगोश मे आखिरी साँस ही, मुकाम-ए- जिन्दंगी मुकरर होती है.

Thursday, September 30, 2010

मंदिर -मस्जिद


क्या मंदिर, क्या मस्जिद बनायेंगे, अगर बन सका तो सियासी मौकापरस्तो को इंसान बनाएँगे.
बहा चुके है हम, अब तक लहू ही अपना , अब तो वतन की तरक्की मे ही , अपना पसीना ही बहेयेंगे.

आज वो बन बैठा है शैतान का कासिद, और हम से हमारे मज़हब का पता पूछता है,
कल जो बैठा था मयखाने मे ए मेरे साकी और दीवानी हसिनाओ का पता पूछता था

उसकी नादानी को तू बख्श ए खुदा, वो मज़हब को मेरी इंसानियत से फर्क करता है
और इसलिए ही वो खुद मे मे बसे राम को खुद के रहीम से अलग करता है

Monday, August 9, 2010

नाकारा

तू खुद को नाकारा न समझ ऐ कूड़ेदान, तू भी इस आशियाँ को खूबसूरती का शुबा देता है
तू खुद बदनामियो से उलझकर उसके दामन को पाक ऐ साफ़ का दर्ज़ा देता है.
यु तो बदनीयती न होती तो तेरी इमानदारी का क्या मोल होता,
जो जिंदगी की शमाए हो हर तरफ तो मौत का परवाना ही न होता.

Friday, July 23, 2010

ज़िन्दगी


जिंदा हु पर ज़िन्दगी की तलाश है, हर दिन की मौत के बाद भी जीने की आस है,
तमाशा-ऐ - दुनिया चलता है यहाँ,फ़नकारो की भीड़ है पर रोज़ मजलूम बनता मै यहाँ,
ख्वाहिशे तो है बहुत कुछ कर गुजरने की,पर रोज़ अंजाम पे क़त्ल होते ,मेरे अरमान यहाँ ,
पैसो की है किल्लते बहुत, पर दिलो मे है अफरात मोहब्बतें, जो देती फिर इक बार मरने का अरमान यहाँ